Last modified on 7 जनवरी 2009, at 14:07

युग-मुक्ति / विजयदेव नारायण साही

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 7 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयदेव नारायण साही |संग्रह=साखी / विजयदेव नारा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जैसे
मवेशी
अपनी त्वचा को
सिहराते हैं
एकबारगी
बूँदें शरीर से
झड़ जाती हैं
वैसे ही...
वैसे ही...