भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी तक / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 7 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद बिलौरे |संग्रह=तय तो यही हुआ था / शरद बिलौरे }...)
अभी
खिड़की में बत्ती नहीं जली
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी मौहल्ला उदास है
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी लोग जाग रहे हैं
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी बच्चे
झोली वाले बाबा से डरते हैं
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी काग़ज़ पर अंगूठा लगता है
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी किसान आसमान तकता है
कवि
अभी तक नहीं आया।
अभी लोग इंतज़ार करते हैं
कवि
अभी तक नहीं आया।