दोपहर के अलसाये पल / पाब्लो नेरुदा
नेफताली रीकर्डो रेइस या पाबलो नेरुदा का जन्म पाराल , चीले, अर्जेन्टीना मेँ 1904 मेँ हुआ था।
वे दक्षिण अमरीकी भूखंड के सबसे प्रसिद्ध कवि हैं । उन्हे सन 1971 में नोबल पुरस्कार मिला था।
पाब्लो नेरुदा ने, अपने जीवन में कई यात्राएँ कीं। रुस, चीन, पूर्वी यूरोप की यात्रा । सन् 1973 मेँ उनका निधन हो गया ।
कविता के बारे में कहना था कि, " एक कवि को भाइचारे और एकाकीपन के बीच एवम् भावुकता और कर्मठता के बीच व अपने आप से लगाव और समूचे विश्व से सौहार्द व कुदरत के उदघाटनोँ के मध्य संतुलित रह कर रचना करना ज़रूरी होता है और वही कविता होती है... "
तुम्हारी समन्दर-सी गहरी आँखों में,
फेंकता पतवार मैं, उनींदी दोपहरी में
उन जलते क्षणों में, मेरा एकाकीपन,
और घना होकर, जल उठता है - डूबते माँझी की तरह
लाल दहकती निशानियाँ, तुम्हारी खोई आँखों में,
जैसे "दीप ~ स्तम्भ" के समीप, मँडराता जल !
मेरे दूर के सजन, तुम ने अँधेरा ही रखा
तुम्हारे हावभावोँ मेँ उभरा यातनोँ का किनारा-
अलसाई दोपहरी में, मैं, फिर उदास जाल फेंकता हूँ -
उस दरिया में , जो तुम्हारे नैया से नयनों में कैद है !
रात के पंछी, पहले उगे तारों को, चोंच मारते हैँ -
और वे, मेरी आत्मा की ही तरहा, और दहक उठते हैं !
रात, अपनी परछाईं की ग़्होडी पर रसवार दौडती है ,
अपनी नीली फुनगी के रेशम - सी लकीरोँ को छोडती हुई !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : लावण्या