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धीरे-धीरे / दिलीप चित्रे

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धीरे धीरे आओ, जैसे आता है शोक
या फ़ुर्सत से आओ जैसे आती है दर्द की याद
जो सुन्न हुए दर्द से भी गहरी यातना देती है

ज़िन्दगी ने मुझे पहले भी सुन्न किया है
और मौत ने उसके बाद हमेशा।
आओ मेरे पास, जैसे धीमी ताल में आती है कविता
एक अनकहा अर्थ पाने।

धीमे सधे क़दमों से पास आओ मेरे
जैसे आती है मौत
करो मेरे साथ टैंगो का अंतिम मत्त नर्तन।

ओ बिजली की गति, चौंका दो मुझे
अपनी गणितीय निरंतरता से
अंकित करो मुझे ईश्वरीय धुंध पर
और कृपा दो कि धीमा हो सकूँ
गहरे अतल में समाते हुए।

अनुवाद : तुषार धवल