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सोगवारों में मेरा क़ातिल सिसकने क्यों लगा / महावीर शर्मा

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सोगवारों में मेरा क़ातिल सिसकने क्यों लगा।
दिल में ख़ंजर घोंप कर, ख़ुद ही सुबकने क्यों लगा?

आइना देकर मुझे, मुँह फेर लेता है तू क्यों
है ये बदसूरत मेरी, कह दे झिझकने क्यों लगा?

गर ये अहसासे-वफ़ा जागा नहीं दिल में मेरे
नाम लेते ही तेरा, फिर दिल धड़कने क्यों लगा?

दिल ने ही राहे-मुहब्बत को चुना था एक दिन
आज आँखों से निकल कर ग़म टपकने क्यों लगा?

जाते-जाते कह गया था, फिर न आयेगा कभी
आज फिर उस ही गली में दिल भटकने क्यों लगा?

छोड़ कर तू भी चला अब, मेरी क़िस्मत की तरह
तेरे संगे-आसताँ पर सर पटकने क्यों लगा?

ख़ुशबुओं को रोक कर बादे-सबा ने ये कहा
उस के जाने पर चमन फिर भी महकने क्यों लगा?