भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक और नरक की कल्पना करो / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 11 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...)
सुनो न्यायाधीश
इस नरक की सारी सजाएँ झूठ
इस नरक में
एक और नरक की कल्पना करो
डर भरो
इस नरक में
उस नरक का
ऎसा करो
यह नरक कुछ छोटा पड़े
सज़ा मत दो
सज़ाओं की कल्पना दो
ओ जगत के ईश