भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मूँछें-1 / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:11, 11 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...)
कहाँ हैं तुम्हारी मूँछें !
बाप बताओ नहीं तो श्राद्ध करो।
क्या तुमने
देखा है अपने पिता को?
अग्नि दी जिस चिता को
क्या वह पिता की थी?
अनाथ शताब्दियाँ बीत रही हैं
कल्पित पिता के सहारे
इस अनाथालय में...
पालनहार !
मैंने नहीं देखी तुम्हारी मूँछें
क्या तुमने भी
देखा था अपने पिता को ?