Last modified on 12 जनवरी 2009, at 10:12

उधर्व स्थिति / श्रीनिवास श्रीकांत

59.94.210.37 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 10:12, 12 जनवरी 2009 का अवतरण


ऊध्र्व स्थिति


सन्नाटा

एकाकीपन

और वायव स्तब्धता

सब बुन रहे

एक अनिर्वच माधुरी

मस्तक की त्रिकुटी में


श्रुतियाँ हैं निष्स्पन्द

फिर भी

अन्दर उतर रहा

एक अपूर्व राग

बिना सरगम

हो रहा स्वरसंघात

हो रही अद्वितीय

दर्शन की रचना


कुण्डलिनी खेल रही

अपना मायावी खेल

हर चक्र का

करती बेधन

लक्षित हो गया है

बिन्दु भी


बजने लगा है


अनहद निनाद

नाडिय़ों में

हवा की बीन

बज रही


शान्त और सौम्य


तन्मात्राओं से हुए मुक्त

सप्त कायाओं के

सभी धरातल

घुल रहा अहंकार का

प्लावी हिमशैल

आद्यान्धकार में

बर्फ की सभी पर्तें

हुईं अदृश्य

दृश्यमान हुआ मानसरोवर

कैलाश का श्वेत आँचल

तैरने लगे कमल हंस।