Last modified on 15 जनवरी 2009, at 12:02

घर -२ / नवनीत शर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 15 जनवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
खिड़कियों को भाने लगा है आकाश
सूरज से बिंध रही है छत
घर तब तक ही रहता है घर
जब तक उग नहीं आते
उसी में से और कई छोटे-छोटे घर.