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एक स्त्री / लीलाधर मंडलोई
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देह एक मिट्टी
एक अनवरत आश्चर्य धुन
देह एक झूठ
एक सतत धोखा
देह एक ब्रांड
एक लगातार विज्ञापन
बाज़ार एक आकर्षक जगह
एक कल्पनातीत कीमत
उसने सुना-गुना सब
वह लिखती है रोज़ बस
उस की क़िताब में एक स्त्री
अब
स्त्री जो मध्य युग से
इतनी बाहर
कि आज की