Last modified on 18 जनवरी 2009, at 01:19

चाय की दुकान वाली सरोज / अवतार एनगिल

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:19, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=एक और दिन / अवतार एनगिल }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाय की दुकान वाली सरोज
नशा निरोधक नियम के तहत
बन्धिनी बनी-
तीन दिन...
तीन मास...
तीन साल...
मानो बीत ग्ए
तीन युग

पर मुकद्दमा पेश नहीं हुआ
तिहाड़ की एक कोठरी में बंद
करती रही
सुबह की प्रतीक्षा
जैसे-तैसे
कर जुगाड़
कुल बने चार हज़ार
उसने किया एक वकील
वकील था काले लबादे वाला भील
ले गया
उसकी उम्र भर की कमाई
आज तक शक्ल नहीं दिखाई

अब तो
तिहाड़ के तीन कपड़ों के सिवा
उसके पास कुछ नहीं
सरोज तिहाड़ को क्या दे?