सखी लौट फिर फागुन आया
संदली सपने आँगन लाया
उपवन की कलियां खिलकर
हँसतीं भौरों से मिलकर
मस्त हुई हूँ मैं भी
साथ खड़े हैं मेरे दिलबर
नयनो का काजल बौराया
भर-भर बैरन पिचकारी
अंग-अंग साजन ने मारी
नयनो से जब मिले नयन
मै अपना सब-कुछ हारी
उनका हर अन्दाज मुझे भाया
सखी लौट फिर फागुन आया