Last modified on 18 जनवरी 2009, at 12:23

हास्य-रस -छ: / अकबर इलाहाबादी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} Category:ग़ज़ल <poem> * मय भी होटल में प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



मय भी होटल में पियो,चन्दा भी दो मस्जिद में
शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो


ऐश का भी ज़ौक़ दींदारी की शुहरत का भी शौक़
आप म्यूज़िक हाल में क़ुरआन गाया कीजिये


गुले तस्वीर किस ख़ूबी से गुलशन में लगाया है
मेरे सैयाद ने बुलबुल को भी उल्लू बनाया है


मछली ने ढील पाई है लुक़में पे शाद है
सैयद मुतमइन है कि काँटा निगल गई


ज़वाले क़ौम की इन्तिदा वही थी कि जब
तिजारत आपने की तर्क नौकरी कर ली