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वे लोग / मोहन साहिल
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वे केवल
धन की प्रतीक्षा में थे
उनका सारा विरोध
रोटी के पक्ष में
सारी लड़ाई
धनी होते ही समाप्त हो गई
और उनकी मान्यताओं के बदलते ही
ठहाकों में बदल गया उनका चीख़ना
वे सब मेरे अपने
जाने कब आ खड़े हुए मेरे सामने
मेरे प्रतिद्वंद्वी बनकर।