भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन हँसी-हँसी में / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 19 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन
हँसी-हँसी में
उसने पृथ्वी पर खींच दी
एक गोल-सी लकीर
और कहा- 'यह तुम्हारा घर है'
मैंने कहा-
'ठीक, अब मैं यहीं रहूंगा'

वर्षा
शीत
और घाम से बचकर
कुछ दिन मैं रहा
उसी घर में

इस बात को बहुत दिन हुए
लेकिन तब से वह घर
मेरे साथ-साथ है
मैंने आनेवाली ठण्ड के विरुद्ध
उसे एक हल्के रंगीन स्वेटर की तरह
पहन रखा है