भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्वार तक आकर / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:57, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदयन वाजपेयी |संग्रह=कुछ वाक्य / उदयन वाजपेयी }} ...)
... और उसके बच्चे
द्वार तक आकर कँपकँपाती है
पवन, ठिठक जाता है प्रभात
वे प्रार्थना की तरह
सो रहे हैं, वह प्रार्थना
की तरह हो रही है