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ठहर जाता है हवा में / उदयन वाजपेयी

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ठहर जाता है हवा में बारिश का
कलरव, विहँसती है आकाश की नीलिमा में
एक पारदर्शी शून्यता, क़िताब के पन्नों में
फड़फड़ाती है गुपचुप यह कहाँ के पक्षी की श्वेत आकृति

अँधेरी रात में वह खटखटाती है
एक खाली देह के
वे सारे द्वार जो भीतर से बन्द हैं