भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सींग और नाख़ून / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
Eklavya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=कुछ और कविताएँ / शमशेर...)
सींग और नाखून
लोहे के बख़्तर कंधों पर।
सीने में सूराख़ हड्डी का।
आँखों में घास-काई की नमी।
एक मुर्दा हाथ
पाँव पर टिका
उल्टी क़लम थामे।
तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है।
जड़ों का भी कड़ा जाल
हो चुका पत्थर।
(1942)