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कहाँ हो पहाड़ / अनूप सेठी

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छू के भी क्या होगा

चट्टान सा खुरदुरा है

रेत सा झरता है

पानी भी तो रहा नहीं

न वो हुलस न वो आस

कोई आँख का हिरण होता

चाहे कोठी का कपोत होता

हर उत्तर में खड़ा होता था भरोसे का आकाश

तुम्हारे कंधों पर, पहाड़

कितना ऊँचा और पास



गल गया गर्भनाल

नदी निकल आई दूसरी दुनिया में

तू जड़ खड़ा रहा

हो गया निर्विकार

                     (1987)