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आँगन फिरत घुटुरुवनि धाए / तुलसीदास

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राग कान्हरा

आँगन फिरत घुटुरुवनि धाए |
नील-जलद तनु-स्याम राम-सिसु जननि निरखि मुख निकट बोलाए ||
बन्धुक सुमन अरुन पद-पङ्कज अंकुस प्रमुख चिन्ह बनि आए |
नूपुर जनु मुनिबर-कलहंसनि रचे नीड़ दै बाँह बसाए ||
कटिमेखल, बर हार ग्रीव-दर, रुचिर बाँह भूषन पहिराए |
उर श्रीवत्स मनोहर हरिनख हेम मध्य मनिगन बहु लाए ||
सुभग चिबुक, द्विज, अधर, नासिका, श्रवन, कपोल मोहि अति भाए |
भ्रू सुन्दर करुनारस-पूरन, लोचन मनहु जुगल जलजाए ||
भाल बिसाल ललित लटकन बर, बालदसाके चिकुर सोहाए |
मनु दोउ गुर सनि कुज आगे करि ससिहि मिलन तमके गन आए ||
उपमा एक अभूत भई तब जब जननी पट पीत ओढ़ाए |
नील जलदपर उडुगन निरखत तजि सुभाव मनो तड़ित छपाए ||
अंग-अंगपर मार-निकर मिलि छबि समूह लै-लै जनु छाए |
तुलसिदास रघुनाथ रूप-गुन तौ कहौं जो बिधि होहिं बनाए ||