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पहाड़-2 / दीनू कश्यप

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चल रही हैं उस पर
कुल्हाड़ियाँ--
कुदालियाँ निरन्तर

हमलावरों के बर-अक्स
खड़ा होता है
सीने को सख़्त किए
वज्र चट्टान-सा

लेकिन जब
अपना ही कोई हाथ
डाइनामाइट को
लगाता है पलीता
तो मार्मिक हो कराहता है

घायल, बेबस और आसान
होते जाने की पीड़ा से
फूटती हैं धाराएँ
जन्म देती हुई
एक और क्रोधित नाले को।