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लड़का लेखक हो गया / सरोज परमार

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एक लड़के ने एक बरसती सुबह को
बरसती आँखों से
किसी शहर को अलविदा कहा
मिट्टी की ख़ुशबू को चूमा,
सागर की लहरों को सहलाया
पहाड़ों की फुनगियों को
बर्फ़ की बुन्दकियों को
आख़िरी सलाम कहा.
पर साथ ले चला ओस भीगे नंगे
पैरों वाली लड़की के सपने .
मेंढ़ पर बैठे हँसते बुड्ढे के तेवर
बहुत दिनों बाद एक दिन अख़बार में पढ़ा
लड़का लेखक हो गया.