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मुश्किल और आसान / सरोज परमार
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जब जंगल में पसर रहा हो सन्नाटा
बहकने लगे हों दड़ियल दरख़्त भी
हवा में घुलने लगी हों साज़िशें
सुबकती घाटियाँ हों बेवक़्त भी
तब बड़ा मुश्किल होता है-
काँपती वल्लरियों को सहलाना
लड़कियों के गुम हुए सपने सजाना
झूठ की पहाड़ियों से सर टकराना
सत्ता को सच का आईन समझाना
तब आसान होता होगा शायद
नस्लों को मिटता देख चुप्पी लगाना
सुविधाओं की डोर थामे खूँटे से बँधना
तपती ज़मीन पर ख़्वाब केसरी सजाना
नसों में बहाते नफ़रत
हँसते हुए बतियाना.