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कितनी हलचल है / नरेन्द्र जैन

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कितनी हलचल है
दीवारों पर डोलती पेड़ों की छाया
परछाइयों का जीवन शुरू होता है
अन्तरिक्ष की सीध में उड़ता हुआ
जाता है सहसा एक पक्षी
छोड़ता हुआ अपनी भाषा का
अन्तिम शब्द

अभी-अभी गुज़रा है
एक सायकल सवार
लोहे की घण्टी बजी है
पहियों की लगातार फैलती
जालीदार छाया सड़क को ढँक
लेती है

बरसों पुरानी दीवार पर
नया-नया रंग महकता है
मुंडेर पर रखे गमले से
ताज़ा पानी बूँद-बूँद टपकता है

कितनी हलचल है
आवाज़ में बहुत-सी आवाज़ों का
मेल है
कहीं प्यार की बातचीत है
गिरते पानी का शोर है
तारों पर टँगे कपड़ों की फड़फड़ाहट है

दुनिया में
पहली आँख खोलने वाले बच्चे का
रुदन है
कितनी हलचल है