भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज की सुबह / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 2 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> ताज़ा हवा से बातची...)
ताज़ा हवा से बातचीत हो सकी आज
रात की रही रंगत देखी सुबह की सड़कों पर
नदी की उनींदी और
पेड़ों की उमंग देखी आज सुबह
कल की दुनिया चलकर आई आज
वहाँ उत्सव मनाए गए थे
योजनाएँ बनी थीं और थोड़ा-बहुत
अशुभ भी घटा कुछ शहरों में
यह सुबह रद्द करती पुरानी प्रविष्टियाँ
पेश करतीं नया पृष्ठ
और उसके बाद सम्भावनाओं की
अनेक सुबहों के कोरे पन्ने
नई शुरूआत के लिए फैलाए बाँहें
आई है मुस्कुराती हुई
फिर आज की सुबह