भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर मसर्रत / मीना कुमारी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:33, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना कुमारी }} category: नज़्म <poem> हर मसर्रत एक बरबादश...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारिकी एक तबाहशूदा रौशनी है
और हर रौशनी एक तबाहशूदा तारिकी
इसि तरह
हर हाल
एर फ़नाशूदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़नाशूदा हाल