भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है / प्रकाश बादल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 4 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश बादल |संग्रह= }} Category:कविता <poem> बोलता नहीं ...)
बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है
सच होंठ पर लेकिन आता तो है।
अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,
मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।
तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,
है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।
फिज़ाओं में यूँ ही नहीं है हलचल,
तीर चुपके से कोई चलाता तो है।
दुश्मन व्यवस्था को टुकड़े न समझें,
दिशाओं का आपस में नाता तो है।
खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।
कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।
हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।