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धरती की आह / तेज राम शर्मा

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अंजुरी से छलक न जाए जल
रेगिस्तानन में
प्यासी होगी धरती

राख में दबाकर रखता हूँ अंगारा
शीत में ठिठुर रही होगी धरती


पहाड़ से चुराता हूँ
एक शीतल साँस
छटपटा रही होगी धरती


छुपाता फिरता हूँ
सोंधी मिट्टी का एक टुकड़ा
चट्टान-सी कठोर
हो रही होगी धरती


बुहार कर रखता हूँ
तारों भरे आकाश का एक कोना
चाँदनी रात में पल भर
सुस्ताती होगी धरती

बचाता फिरता हूँ
बीज का एक दाना
शिशु सपने देखती होगी धरती।