भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षणिकाएँ / रंजना भाटिया

Kavita Kosh से
92.243.181.53 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 11:49, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया }} <poem> '''1. गूंगी''' मेरी आवाज़ अब ख़ु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  



1. गूंगी

मेरी आवाज़
अब ख़ुद
मुझसे
पराई हो गयी है

इस भीड़ भरी दुनिया में
बेजान-सी हो कर
ख़ुद को ही
गूंगी कहती हूँ !!