Last modified on 7 फ़रवरी 2009, at 01:55

स्त्री / केशव

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:55, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

स्त्री शामिल रहती है
सबकी यात्रा में
सबसे निभाती अंत तक
किसी को करती
चरण-स्पर्श
किसी को प्रणाम
किसी के लिए व्रत
किसी के लिए चारों-धाम
थकती नहीं वह
सब करते हुए
जो रहता अनाम।

उसकी अपनी यात्रा में
शामिल नहीं होता कोई
फिर भी
उसके दुख का काँटा
गड़ा रहता सबके दिल में
सुख का भी

उसकी यात्रा
देह से होती शुरू
देह पर ही खत्म।