पतंग उड़ाते बच्चे / स्वप्निल श्रीवास्तव
टेलिफ़ोन के तारों के बीच फँसी हुई है पतंग
बच्चे डोर का आख़िरी सिरा खोज रहे हैं
वे उसे उड़ाएंगे नए आकाश में
पतंग बच्चों के हाथ में है
जिससे वे छुएंगे आकाश
और विद्युत की कंपन महसूस करेंगे अपने शरीरों में
बच्चों के शरीरों में आएगी स्फूर्ति
वे दौड़ेंगे-- इस छत से उस छत
पतंग के साथ
छत पर तमाम बच्चे हैं
आकाश में तमाम पतंगें
माता-पिता मना करते हैं बच्चों को
बच्चे परवाह नहीं करते
वे जोख़िम उठाने के लिए रहते हैं हर वक़्त तैयार
पतंग उड़ाते हुए वे नहीं सोचते कि
उनके पीछे कहाँ ख़त्म हो रही है छत
या ज़मीन पर कहाँ है अन्धा कुँआ
उनकी आँखों में है नीला आकाश
आकाश में तैरती हुई पतंगें
पतंगें-- जैसे ग्लास-टैंक में तैर रही हों
रंग-बिरंगी मछलियाँ
पतंग उड़ाते बच्चे आकाश को भेजते हैं संदेश
कि वे आकाश को जीतने आ रहे हैं