भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप की नदी / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:34, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण
धूप में नदी
सूर्य का
सीधे सामना
करती है
ख़ामोश मुठभेड़ में
गर्म हो जाता है
नदी का पानी
नदी सिमट कर
हो जाती है
अंजुरी-भर
और तट
काफ़ी दूर
नदी
जीवित रहती है
पानी में
बादलों में
समुंदर में
लोगों के अनुभव में
और
धूप में भी
दिन की तरह
जीवित रहती है
नदी