भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नियति / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:40, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण
फ़िज़ूल लगता है
कानून का
आत्महत्याओं पर रोक लगाना ।
या बच गए इन्सान के दिन
बन्द कर देना सीखचों में ।
जबकि
सब एक क्रम में
अपने को मार रहे हैं
धीरे-धीरे ।