कवि: मीराबाई
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पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥ जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥ सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो। 'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥