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तुम्हारा कभी कोई नाम ना था / मोहन राणा

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वे व्यस्त हैं

वे महत्वपूर्ण काम में लगे लोग हैं

मुझे शिकायत नहीं वे व्यस्त

मेरे हर सवाल पर उनका हाल

कि वे व्यस्त हैं,

रुक कर देखने भर को कि अब नहीं मैं उनके साथ चलता

पर वे ही बुदबुदाते कोई मंत्र

मैं व्यस्त हूँ

मैं व्यस्त हूँ

सदा समय के साथ

सदा समय के साथ


पर कान वाले लोग बहरे हैं,

और 20/20 आँख वाले अंधों की तरह टटोल रहे हैं दिन को.


और समय वही दोपहर के 11:22

कहीं शाम हो चुकी होगी

कहीं अभी होती होगी सुबह नयी

कहीं आने वाली होगी रात पुरानी


क्या तुम लिखती ना थी कविताएँ कभी

पूछता उससे

जैसे कुछ याद आ जाए उसे,

लिखती थी कभी, पर अब अपना नाम भी नहीं लिखती,

कौन सा नाम मैं पूछता उसकी खामोशी को

जो अब याद नहीं

कि भूलना कठिन है तुम्हें


16.11.2005