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बनी रहने दो / ओमप्रकाश सारस्वत

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बनी रहने दो गहनतम गुह्यता
प्रकट में है तथ्य क्या?
मत पास लाना
नहीं तो मैं छोड़ दूँगा
कल्पना करना
कठिन संसाधन करना

जब तक रहोगे दूर
कोसों दूर
मेरी गम्यता से
तब तक तो मैं
अतितीव्रता गतिशीलता से
पास आने को सदा चलता रहूँगा
पर कहीं प्रिय! रहस्यता अपनी दिखाकर
प्रकट मत होना
नहीं तो मेरे चरनों की गति रुक जायेगी

तुम रहो कहीं दूर
 किसी गहन पटल में
और मैं यहाँ
स्नेह को पालता रहूँ
दूरियाँ ही स्नेह को परिपक्व करती हैं

फिर चिर प्रतीक्षा के अनंतर,मिलन में
जो बसा आनन्द, बह शीघ्र दर्शन में
भला क्या निहित है?
बस,बना रहे
प्रेम तेरा, और मेरा
तुम रहो आराध्य मेरे देव
मैं पावन पुजारी नित्य तेरा

मैं सदा गाता रहूँ
तेरे विरह के गीत
तेरे मिलन के मंगल तराने

पर तुम अपनी सत्यता
दिखलाना मत
नहीं तो
अंत हो जाएगा मेरी लगन का।