भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्फ़ गिरती है / हेन्द्री स्पेशा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेन्द्री स्पेशा |संग्रह= }} <Poem> बर्फ़ गिरती है बर्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बर्फ़ गिरती है बर्फ़ बन कर
और मेरी अँगीठी से हियासिंथ की ख़ुशबू उठती है

बर्फ़ गिरती है रात बन कर
और मुझ में से झाँकती है उदासी

बर्फ़ गिरती है मेरे भीतर बर्फ़ बन कर
और मेरी घड़ियाँ गिरती हैं
मुस्तकबिल दे
कफ़न में

अनुवाद : विष्णु खरे