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खुश हो जाइए, पंडित जी / कुमार वीरेन्द्र

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खुश हो जाइए, पंडित जी कि अब गिद्ध्‍ नष्‍ट होने को हैं कौवे भी पहले जितने नहीं दिखते कम दिखने लगे हैं काग

पंडित जी खुश हो जाइए कि जब रहेंगे ही नहीं तो आपके जजमानों के छप्‍पर के उपर कहां से बैठेंगे गिद्ध्‍ इसलिए बचें गृहत्‍याग की आशंका से कि होत भोर कौओं की कांव-कांव सुन गरियाने से छुटकारा मिलने को है और जुड़वे काग देख मरनी की ख्‍बर पेठाने से मिलने वाली है मुक्ति

जी, पंडित जी, हो जाइए खुश वैसे तो आपके अपनों ने ही गढ़े ये जंजाल तो भी चिंतन से ज्‍यादा बेहतर है चिंतित होना उससे बेहतर दुखी होना और इन सबसे बेहतर है सेहत के लिए खुश होना आप खुश हो जाइए पंडित जी

लेकिन ... लेकिन जब देखता हूं बिल्‍ली का रास्‍ता काटते और लोगों को अपना रास्‍ता बदलते या थुकथुकाते या बकरी के छींकने पर किसी को वापस घर लौटते कुछ देर रूक फिर बाहर निकलते

लगता है ऐ दुनिया वालों कि पंडित जी से इतनी जल्‍दी खुश हो जाइए पंडित जी, कहना बहुत बड़ी खुशफहमी है।