कुछ तो कहो न
मुझसे तुम
हो क्यों इतने
मायूस से तुम
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फ़िर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्देलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पा गई मैं तो तुझ में
अपना ठिकाना
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...