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ये हवा के साथ मिल कर क्या ज़हर आने लगे / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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ये हवा के साथ मिल कर क्या ज़हर आने लगे
रफ़्ता-रफ़्ता अब सभी अहसास पथराने लगे

दोस्तों की दोस्ती हो प्यार हो या हो वफ़ा
भूख के मारे हुए जो भी मिला खाने लगे

जबसे हमने उनकी हाँ में हाँ मिलानी छोड़ दी
हमने देखा है बहुत इल्ज़ाम सर आने लगे

इस बला की धूप में सूखे दरख़्तों के तले
मुन्तज़िर कैं लोग कि ठंदी हवा आने लगे

क्या नहीं है अपने होने का किसी को ऐतबार
क्या वजह है आइनों से लोग कतराने लगे