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नौ सपने / भाग 6 / अमृता प्रीतम

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आषाढ़ का महीना –
स्वाभाविक तृप्ता की नींद खुली
ज्यों फूल खिलता है,
ज्यों दिन चढ़ता है

"यह मेरी ज़िन्दगी
किन सरोवरों का पानी
मैंने अभी यहाँ
एक हंस बैठता हुआ देखा

यह कैसा सपना?
कि जागकर भी लगता है
मेरी कोख में
उसका पंख हिल रहा है..."

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