Last modified on 15 फ़रवरी 2009, at 00:27

एक रोज-1 / लीलाधर मंडलोई

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 15 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक रोज़ मैंने देखी ऊसर ज़मीन
कुछ रोज़ बाद वहाँ कुदाल लिए एक आदमी था

एक रोज़ मैंने देखी बित्ता भर नमी
कुछ रोज़ बाद वहाँ पत्थरों से झाँकती दूब थी हरी कच्च

पत्थर अब दूब में मगन हो रहे थे
दूब अब आदमी में हरी हो रही थी


रचनाकाल : जुलाई 1991