भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टुकड़ों में बँटा घर-दो / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:38, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एन गिल |एक और दिन / अवतार एन गिल }} <poem> रिम-झिम ...)
रिम-झिम बरसते सावन में
वह स्त्री
बेमतलब ही
एक से दूसरे कमरे में
जा-आ रही थी
एकाएक उसे लगा
बेटे ने ही
भड़भड़ाया था द्वार
कुछ वैसी ही
अधीर पुकार
भागती आई
सांकल हटाई
वही तो था! चश्मा लगाये
अंधियारी एक आँख छिपाये
एक टाँग वाला उसका लाल
बैसाखी पर तन झुकाये।