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ज़िंदगी क्या हैं जब सोचने बैठे / ब्रजेन्द्र 'सागर'
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ज़िंदगी क्या हैं जब सोचने बैठे
मय का जादू भरा मस्त प्याला है
या कि तन्हाई के सीने में लगा दर्द का खंज़र
महबूब के होंठों की शीरीनी है
या कि ज़र ज़मीन के ख्वाबों का नाम
शीरीनी =मिठास
हर नफ़स में ज़िंदा हैरत की ताज़गी है
या कि सुबह का शाम से इक थका सा रिश्ता
नफ़स=साँस
ज़िंदगी क्या हैं जब सोचने बैठे