भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा / केशव

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 20 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> मेरे भीत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे भीतर मौजूद है
एक और चेहरा
जिसे पहचानने की कोशिश में
झरते जा रहे हैं रंग
एक-एक कर

कहाँ से उठ रही है
अहं के जलने की गंध
सोचते-सोचते
झुकने लगे हैं कँधे

मैं समझता रहा दुख को
औरों के घर का
सनसनीखेज़ समाचार
पर अब उसका खुला जबड़ा
मुझे अपनी खिड़की के काँच से
दिखाई देता है

सामने है आईना
पर चेहरा नदारद
शायद कहीं
परहेज की दीवार पर बैठा हूँ

कैसा हूँ
कि कहीं होने से पहले ही
अपना चेहरा गँवा बैठा हूँ.