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कोई बात नहीं / केशव

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दायीं ओर बैठना
या बायीं
रिश्तों की नींव को करता
खोखला नहीं

पर सोच के धरातल पर
बैठा कठफोड़ा
पाँव टिकाने के लिए
बित्ते भर जगह
छोड़ता नहीं

देखते ज़रूर पास से
फिर भी टूटते
एक नामालूम
एहसास से
जिस पर उँगली रखना
हमारे बस की बात नहीं

खुशी को पहनकर
कवच की तरह
कहना कि हम उदास नहीं
जैसे कोई बात नहीं

प्यार के नाम पर
एक चुप्पी
लीलती हर वक्त हमें
इतनी बड़ी जिंदगी तब
छोटी सी दीखती हमें

दूसरे की आवाज़ से डरकर
चौंकने का अभिनय तो
कर लेते हम खुद
अपनी नाबालिग आवाज को
सजाकर रख देना
खूबसूरत बनावटी फूलों को
गुलदस्ते की तरह
दूसरे के सामने
होता कुछ पास नहीं
कोई बात नहीं.