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करोगी क्या / केशव
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मेरे कँधों पर से
लुढ़क जायेगा जब सूरज
अपनी आशँकाओं, आकाँक्षाओं का
क्या करोगी तुम
मेरे न होने से
तुम्हारी पलकों में
गड़ जाएगी
अकेलेपन की जो कील
अपनी दृष्टि को तब
टिकाओगी
किन झरनों पर
करोगी क्या
उन दीवारों का
जिनमें लहुलुहान उंगलियों का
अवसादपूर्ण संगीत
टुकड़ा-टुकड़ा
फड़फड़ायेगा
स्मृतियों की ठँडी गोद में
आँखें खोलेगा जब तुम्हारा अहं
प्यार में
अकेले होने का अर्थ
तब भी क्या तुम समझ पाओगी.