भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे / जॉन एलिया
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जॉन एलिया }} Category:ग़ज़ल <poem> अख़लाक़ न बरतेंगे मुद...)
अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
अब हम किसी शख़्स की परवाह न करेंगे
कुछ लोग कई लफ्ज़ ग़लत बोल रहे हैं
इसलाह मगर हम भी अब इसलाह न करेंगे
कमगोई के एक वस्फ़-ए-हिमाक़त है बहर तो
कमगोई को अपनाएँगे चहाका न करेंगे
अब सहल पसंदी को बनाएँगे वातिरा
ता देर किसी बाब में सोचा न करेंगे
गुस्सा भी है तहज़ीब-ए-ताल्लूक़ का तलबगार
हम चुप हैं भरे बैठे हैं गुस्सा न करेंगे
कल रात बहुत गौर किया है सो हम ए "जॉन"
तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे