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अब चलेंगी तेज़तर कितनी हवाएँ देखना / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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अब चलेंगी तेज़तर कितनी हवाएँ देखना
जंगलों से आएँगी क्या-क्या सदाएँ देखना

आदमी के साथ जो करते रहे हैं साज़िशें
वक़्त देता है उन्हें क्या-क्या सज़ाएँ देखना

हो गया है तेज़ कितना हर भरम का टूटना
क्या ख़बर अब लोग क्या-क्या गुल खिलाएँ देखना

लौटकर आता नहीं है ख़ुदपरस्ती से कोई
इस गुफ़ा से हैं जुड़ी कितनी गुफ़ाएँ देखना

हो गया कितना ज़रूरी अब हिफ़ाज़त के लिए
हत्र क़दम पर आगे-पीछे दाएँ -बाएँ देखना