मसीहा वो करम फ़रमा गया है
सलीबों पर हमें लटका गया है
ख़ुदा जाने हमारा हश्र क्या हो
जिसे देखो वही नेता गया है
सुनाएँ हम किसे अपनी कहानी
यहाँ हर आदमी पथरा गया है
अगरचे हर कहीं मेला रबाँ है
मगर हर आदमी तन्हा गया है
नवाज़िश है तुम्हारी बाग़बानों !
जवानी में चमन मुरझा गया है
रिहा इक क़ैद से करवा गया था
मगर गिरवी हमें रखवा गया है
हमें अब नाख़ुदा समझा रहे हैं
किनारों को तो दरिया खा गया है